दिल-ए-सहरा कि ज़द सैलाब देखे थे

  - Nikhil Tiwari 'Nazeel'

दिल-ए-सहरा कि ज़द सैलाब देखे थे
नदी की ओक में तेज़ाब देखे थे

गए वो दिन कि जब ख़ालिस निगाहों से
यहाँ के सब शजर शादाब देखे थे

हमें मालूम है जाते ही लश्कर ने
पलट कर क्यूँ गुल-ए-महताब देखे थे

ज़मीं का इश्क़ टूटा आसमाँ से तो
सितारे और भी ज़रताब देखे थे

रखें क़ुर्बत उन्हीं बर्बादियों से क्या
कि जिसके आपने भी ख़्वाब देखे थे

मिले ऐसे थे मुद्दत बाद हम ख़ुद से
कि जैसे सामने दो-आब देखे थे

  - Nikhil Tiwari 'Nazeel'

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