ख़्वाबों ने दिल में दरवाज़े खोले हैं - Praveen Sharma SHAJAR

ख़्वाबों ने दिल में दरवाज़े खोले हैं
उसने जब खिड़की के पर्दे खोले हैं

मैं तो गिरहें लगा चुका था इस दिल पर
उसने आँखें खोल के ताले खोले हैं

अब समझा हूँ कितनी ग़लत फ़हमी में था
मैंने जब रिश्तों के पत्ते खोले हैं

वरना मेरी आँख में कोई नूर न था
उसने ही सूरज के पिंजरे खोले हैं

हवस मिटा कर उसने मुहब्बत माँगी है
जिस्मों ने रूहों के रस्ते खोले हैं

हमें कोई बतला दो इश्क़ बला क्या है
हमने बस जिस्मों के फ़ीते खोले हैं

दर्दों ने ख़ुद चीख के मरहम माँगा है
उसने जब ज़ख़्मों के टांके खोले हैं

सारे पंछी तोड़ चुके हैं दम अपना
तुमने थोड़ी देर से पिंजरे खोले हैं

पहली बार मुहब्बत जिस्म से हारी है
उसने जिस तेज़ी से कपड़े खोले हैं

- Praveen Sharma SHAJAR
1 Like

More by Praveen Sharma SHAJAR

As you were reading Shayari by Praveen Sharma SHAJAR

Similar Writers

our suggestion based on Praveen Sharma SHAJAR

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari