मेरे आँगन की बेल है साहब - Praveen Sharma SHAJAR

मेरे आँगन की बेल है साहब
जिसका उस घर में खेल है साहब

फिर न मिलनी जो इक दफ़ा छूटी
ज़िन्दगी जैसे रेल है साहब

बूढ़े होकर भी जलते रहते हैं
इन चराग़ों में तेल है साहब

आपके साथ की ये आज़ादी
इससे बेहतर तो जेल है साहब

आज मेरी है कल तुम्हारी थी
देखो दौलत रखेल है साहब

पंछियों की नज़र है दाने पर
मेरे हाथों गुलेल है साहब

- Praveen Sharma SHAJAR
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