मेरे आँगन की बेल है साहब
जिसका उस घर में खेल है साहब
फिर न मिलनी जो इक दफ़ा छूटी
ज़िन्दगी जैसे रेल है साहब
बूढ़े होकर भी जलते रहते हैं
इन चराग़ों में तेल है साहब
आपके साथ की ये आज़ादी
इससे बेहतर तो जेल है साहब
आज मेरी है कल तुम्हारी थी
देखो दौलत रखेल है साहब
पंछियों की नज़र है दाने पर
मेरे हाथों गुलेल है साहब
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