कोई पूछे कि माजरा क्या है
तो बताएँ हमें हुआ क्या है
तोड़ कर दिल भरा मुहब्बत से
ऐ ज़माने तुझे मिला क्या है
जो भी मिलता है वो नहीं मिलता
जाने क़िस्मत का फ़ैसला क्या है
हो गई ज़िंदगी की शाम अब तो
आप के बाद अब बचा क्या है
जानता हूँ मैं तेरा कुछ भी नहीं
जानता है कि तू मेरा क्या है
मरते मरते ये हमने जाना है
जीते रहने का हौसला क्या है
आज मिलता है कल नहीं मिलता
दोस्त बतला ये सिलसिला क्या है
तेरे होने से हार भी है शय
तू नहीं है तो जीतना क्या है
याद आता नहीं तिरा चेहरा
यार ये मेरा हाफ़िज़ा क्या है
मर रही हो मेरी ख़ुशी के लिए
और आशिक़ भी चाहता क्या है
शायरी झूठ पर नहीं चलती
फ़िर ये दुनिया में चल रहा क्या है
ज़िंदगी ज़िंदगी के जैसी हो
इससे आगे तो माँगना क्या है
तेरी सूरत नहीं दिखेगी क्या
फिर ज़माने में देखना क्या है
आप की याद आ रही है ’निषाद’
इश्क़ में और तो मिला क्या है
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