कभी कहीं पर कभी किसी ने कभी किसी का जो दिल दुखाया
हमें मुहब्बत के अपने आधे अधूरे क़िस्से ने ख़ूँ रुलाया
परिंद का घर उजाड़ा उसने परिंद का हमने घर बनाया
जहाँ से उसने शजर को काटा वहाँ पे हमने शजर लगाया
किसी ने आँसू बहाए छुपकर तो कोई मैदाँ में मुस्कुराया
ग़दीर-ए-ख़ुम में रसूल-ए-अकरम ने जब अली को वली बनाया
अली मुहम्मद के जाँ-नशीं थे लिखी है तारीख़ जा के पढ़ लो
हुसैन इब्न-ए-अली ने दीन-ए-मुहम्मद-ए-मुस्तफ़ा बचाया
तुम्हारी आँखों में देखने को हराम कहने लगेंगे वाइज़
तुम्हारी आँखों से जाम पीकर अगर मैं महफ़िल में लड़खड़ाया
क़फ़स के अन्दर उदासियों में परिंद सारे ये मुतमइन हैं
फ़क़त इसी फ़िक्र ने ही शब भर महल में सय्याद को जगाया
मज़ार-ए-दिल पर चढ़ा गया है वो फूल ग़म के मलाल कीजे
मलाल हाए मलाल इस पर किसी बशर ने नहीं जताया
हसीन लड़की मिरी दुआ है हसीन लड़का हो तेरा साथी
उसे जो देखा मिरी नज़र ने मिरे लबों पर ये फ़िक़रा आया
तुम्हारी क़समों तुम्हारे वादों तुम्हारी यादों ने लम्हा लम्हा
क़सम ख़ुदा की क़दम क़दम पर हमें रुलाया बहुत रुलाया
ये याद रखना हवस-परस्ती सिवा उदासी के कुछ न देगी
ज़माने भर के जवान बच्चों को हमने ये ही सबक़ पढ़ाया
हाँ अपनी मर्ज़ी से याद रखना यहाँ नहीं आए हैं वतन से
सितमगरों ने हमें सताया तो हमने दश्त-ए-जुनूँ बसाया
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