क्यूँ कर तू मेरी बात समझता नहीं है दोस्त
ये इश्क़ तेरे वास्ते अच्छा नहीं है दोस्त
जिस पर तू जाँ लुटाता है इक सच्चा मानकर
मैं तुझको सच बताऊँ वो सच्चा नहीं है दोस्त
रक्खे हुए हैं आज भी संदूक में मेरी
मैने तेरे ख़तों को जलाया नहीं है दोस्त
क्यों कर रहा है तू उसे पाने की कोशिशें
तक़दीर में ख़ुदा ने जो लिक्खा नहीं है दोस्त
ये अश्क-ओ-ख़त ये सीने से लग जाना आनकर
ज़ख्म-ए-जिगर का मेरे मदावा नहीं है दोस्त
तेरी तरह से वो भी मेरी अच्छी दोस्त है
जो तू समझ रहा है ना वैसा नहीं है दोस्त
बेशक मेरा लिबास-ए-बदन चाक है तमाम
किरदार पर मगर कोई धब्बा नहीं है दोस्त
मैं अजनबी हूँ उसके लिए वो मेरे लिए
अब हम में कोई पहले सा रिश्ता नहीं है दोस्त
चौदह बरस की उम्र में ये इश्क़ का मरज़
यानी तुम्हारा हाल कुछ अच्छा नहीं है दोस्त
लिक्खा था जितना सब मेरी तक़दीर में मिला
तक़दीर से मुझे कोई शिकवा नहीं है दोस्त
ख़तरा है जितना जान का इन अक़रिबाओं से
गैरों से इतना जान का ख़तरा नहीं है दोस्त
कुम्हला रहा है गुलशन-ए-दिल का मेरे शजर
तुमने इसे जो होंठों से चूमा नहीं है दोस्त
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