जाते हुए पैग़ाम-ए-हया देके गया है
तोहफ़े में शजर मुझको रिदा देके गया है
इक शख़्स नए फ़न से सज़ा देके गया है
बिछड़ा है तो जीने की दुआ देके गया है
हर बार के जैसे ही तेरी याद का झोंका
ज़ख़्मों को मेरे दिल के हवा देके गया है
रक्खूँगा सजाकर उसे काशाना-ए-दिल में
मुझको जो तू ईनाम-ए-वफ़ा देके गया है
लो वादी-ए-पुर-ख़ार में हैं हज़रत-ए-मजनू
लैला को अभी कोई पता देके गया है
गुम सुम से रहा करते थे सब फूल चमन में
इक भँवरा तब्बसुम की अदा देके गया है
मैदान-ए-मोहब्बत से कोई दिल का जनाज़ा
ले जाओ उठाकर ये सदा देके गया है
रक्खे नहीं बे आब-ओ-गिज़ा पाँव के छाले
बीमार इन्हें आब-ओ-गिज़ा देके गया है
माँगी है किसी ने तो ज़माने पे हुकूमत
और कोई ज़माने को ख़ुला देके गया है
वो लौट के शायद नहीं आएगा वतन को
वो आज शजर इज़्न-ए-विदा देके गया है
तड़पेगा शजर बन्दा वो फ़ुर्क़त में किसी की
जो तुझको मोहब्बत में दग़ा देके गया है
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