फ़ज़ाओं में ये गूँजेगी सदा आहिस्ता आहिस्ता
मुझे ये दास्तान-ए-ग़म सुना आहिस्ता आहिस्ता
न मंज़र भूलने पाऊँगी जब तक भी जिऊँगी मैं
जुदा तन से किया तेरा गला आहिस्ता आहिस्ता
सुहाना हो रहा है दोस्तों यूँ मौसम-ए-कर्या
रूख़-ए-अनवर से हटती है रिदा आहिस्ता आहिस्ता
समझ में ये नहीं आता इलाही माजरा क्या है
वो होने लग गए हैं बेवफ़ा आहिस्ता आहिस्ता
मुसलसल कह रहा है ये शजर इक शाहज़ादी से
तू अपनी ज़ुल्फ़ चेहरे से हटा आहिस्ता आहिस्ता
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