मुनाफ़िक़ का दहकता है जिगर आहिस्ता आहिस्ता
मेरे शाने पे रखते हैं वो सर आहिस्ता आहिस्ता
मेरी बाँहों में होगी वो मैं उसका माथा चूमूँगा
मुहब्बत में भी आयेगा असर आहिस्ता आहिस्ता
मिलेगी राहरों को देखना तुम चैन की छाया
और आयेगा शजर पे फिर समर आहिस्ता आहिस्ता
जवानी उम्र भर के वास्ते कब साथ देती है
ये ख़म हो जायेगी यारों कमर आहिस्ता आहिस्ता
क़फ़स का और सुनो सय्याद का दिल से परिंदे के
यकीं है अब निकल जायेगा डर आहिस्ता आहिस्ता
मेरे हमदम मेरे हमराज़ मेरे क़ल्ब की धड़कन
मेरे कूचे से तुम करना गुज़र आहिस्ता आहिस्ता
मुसाफ़िर तोड़ मत देना तू हिम्मत राह में अपनी
तुझे आ जायेगी मंज़िल नज़र आहिस्ता आहिस्ता
घटाएँ ख़त्म होंगी तीरगी मिट जाएगी सारी
नमू होगा अभी यारों क़मर आहिस्ता आहिस्ता
अमीर-ए-शाम को पैग़ाम पहुँचा दो असीरों का
बना लेंगे क़फ़स को अपना घर आहिस्ता आहिस्ता
मेरे माँ बाप मुझको देख के अक्सर ये कहते हैं
जवाँ हो जाएगा अपना शजर आहिस्ता आहिस्ता
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