इक मुसाफ़िर कह रहा है याँ मिरा कोई नहीं
पुर-ख़तर रस्ता है लेकिन रहनुमा कोई नहीं
इश्क़ की दहलीज़ पर मय्यत पड़ी है क़ल्ब की
दिल की ग़ुर्बत पे यहाँ पर ग़म-ज़दा कोई नहीं
कर दिया गुल अपने ख़ैमे का दिया शब्बीर ने
छोड़ के ख़ैमा मगर देखो गया कोई नहीं
ये ख़ुशी है आ गया हूँ मैं तेरी महफ़िल तलक
पर मलाल इसका है मुझको देखता कोई नहीं
हार कर हिम्मत शजर ने ज़िन्दगी से ये कहा
अब सिवाए ख़ुदकुशी के रास्ता कोई नहीं
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