मिरे यार अहबाब महबूब हमदम सभी सफ़ में दुश्मन की यकजा खड़े हैं
मुसीबत में किससे मदद माँगू आख़िर मुझे साँस लेने के लाले पड़े हैं
जिन्हें तिल समझता है सारा ज़माना ये तिल तिल नहीं हैं तुम्हारे बदन पर
तुम्हें हुस्न के साथ तिल दे के रब ने फ़लक की जबीं पर सितारे जड़े हैं
बिना बात हर बात पर लड़ने वालों अगर हमसे लड़ना तो ये सोच लेना
मुसीबत उठाई है हर गाम हमने तुम्हारे लिए हम जहाँ से लड़े हैं
मुहब्बत के मक़तल में जो हाल-ए-दिल है बयाँ कर रहा है मनादी बिलखकर
बदन दिल का जलती ज़मीं पर है उर्यां जुदाई के सीने में नेज़े गड़े हैं
अजब मरहला है मुसीबत में जाँ है करें तो करें क्या हैं इस कश्मकश में
हमें ज़िद है हम दिल किसी को न देंगे उन्हें चाहिए दिल वो ज़िद पर अड़े हैं
जो मैं कह रहा हूँ वो सुन ग़ौर से तू न कर शैख़ जी का 'शजर' से तक़ाबुल
'शजर' की बराबर नहीं हैं ये आक़िल भले ही ये क़द में 'शजर' से बड़े हैं
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