जहाँ में हक़ को हक़ कहने की जुरअत है तो बिस्मिल्लाह
जो दिल में जज़्बा-ए-शौक़-ए-शहादत है तो बिस्मिल्लाह
मुहब्बत में शिकायत की इजाज़त तो नहीं लेकिन
अगर फिर भी तुम्हें कोई शिकायत है तो बिस्मिल्लाह
सबा ने फूल से पूछा लबों से चूम लूँ तुझको
जवाबन फूल ये बोला ज़रूरत है तो बिस्मिल्लाह
निगाह-ए-नाज़ के ज़रिए दिल-ए-नादाँ चुराने की
तुम्हारे शहर की कोई रिवायत है तो बिस्मिल्लाह
अगर नफ़रत का हामी है तो मेरे पास मत आना
अगर पैग़ाम पैग़ाम-ए-मुहब्बत है तो बिस्मिल्लाह
मुहब्बत के गुलिस्ताँ में अगर भँवरे लब-ए-गुल को
लब-ए-नाज़ुक से बोसे की जो चाहत है तो बिस्मिल्लाह
ये दिल दश्त-ए-जुनूँ की मिस्ल है दश्त-ए-जुनूँ में गर
हक़ीक़त में तुम्हें रहने की हसरत है तो बिस्मिल्लाह
नमाज़-ए-इश्क़ के अन्दर फ़िराक़-ए-यार का सज्दा
अदा करने की गर चे तुझमें क़ुव्वत है तो बिस्मिल्लाह
हमारा दिल मुसल्ला है नमाज़-ए-इश्क़ पढ़ने का
अज़ान-ए-वस्ल दे वक़्त-ए-इक़ामत है तो बिस्मिल्लाह
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