नग़्मा-ए-शौक़ सा होंठों पे सजा ले मुझको
रोज़-ओ-शब-शाम-ओ-सहर जान-ए-जाँ गा ले मुझको
मक़तल-ए-इश्क़ में है नौहा कुनाँ क़ल्ब-ए-हज़ीं
लग गए तीर-ओ-तबर-खंजर-ओ-भाले मुझको
ख़ार-ए-अक़रब की तरह आँखों में चुभता है जहाँ
ऐ ज़मीं बहर-ए-ख़ुदा ख़ुद में समा ले मुझको
देख ले बरसों से मैं तुझसे ख़फ़ा बैठा हूँ
है क़ज़ा मुझसे मोहब्बत तो मना ले मुझको
मिस्ल-ए-युसूफ़ मेरे माबूद हूँ मैं महव-ए-दुआ
दौर-ए-हाज़िर की ज़ुलेख़ा से बचा ले मुझको
बा ख़ुदा ज़ीनत-ए-दुनिया नहीं होना है मुझे
ऐ क़ज़ा ज़ीनत-ए-आग़ोश बना ले मुझको
राह-ए-गुम-कर्दा की सूँ बढ़ने लगे मेरे क़दम
क़िबला-ए-दुनिया-ओ-दीं आ के बचा ले मुझको
वक़्त पे रोज़ इन्हें देता हूँ मैं आब-ओ-गिज़ा
रोज़ देते हैं दुआ पाँव के छाले मुझको
गोद ख़ुशियों के समर से तेरी भर डालूँगा
ऐ बशर क़ल्ब के आँगन में लगा ले मुझको
मैं तेरी ईद हूँ होली हूँ मैं दीवाली हूँ
क्यूँ यहाँ बैठा है तू जा के मना ले मुझको
क़ल्ब-ए-मुज़्तर के दरीचें से गिरा हूँ मैं तेरे
मालिक-ए-हुस्न-ए-शहर आ के उठा ले मुझको
जिस्म की क़ैद में घुटता है शजर दम मेरा
जिस्म की क़ैद से कोई तो निकाले मुझको
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