शाख़-ए-शजर पे गुल के बदन चाक हो गए

  - Shajar Abbas

शाख़-ए-शजर पे गुल के बदन चाक हो गए
इस मौसम-ए-ख़िज़ाँ में चमन ख़ाक हो गए

सदमे गुज़र रहे हैं दिल-ए-बाग़बान पर
मंज़र जो ख़ुश-नुमा थे वो ग़म-नाक हो गए

  - Shajar Abbas

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