छतों पे जब भटकता है क़मर आहिस्ता आहिस्ता
खुले जाते हैं सबके बाम ओ दर आहिस्ता आहिस्ता
उदासी की अमरबेलें मेरे सीने से हटती हैं
जभी खिलता है मुझपे गुलमोहर आहिस्ता आहिस्ता
कभी तुमसे मुलाक़ातों के लंबे सिलसिले होंगे
कभी देखेंगे तुमको आँखभर आहिस्ता आहिस्ता
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