धीरे-धीरे से जल रहे हैं हम
मौत की ओर चल रहे हैं हम
दूर रहिए उबल रहे हैं हम
आजकल सच उगल रहे हैं हम
हम मिलेंगे तुम्हें किताबों में
ढेर-अभावों में पल रहे हैं हम
ज़िंदगी अपना लेना अब हमको
तेरे साँचे में ढल रहे हैं हम
भूक इतनी बड़ी कि आलम है
ख़ुद ही ख़ुद को निगल रहे हैं हम
दूर से ही सलाम कर लेना
आइना बन टहल रहे हैं हम
As you were reading Shayari by Aatish Indori
our suggestion based on Aatish Indori
As you were reading undefined Shayari