धीरे-धीरे से जल रहे हैं हम

  - Aatish Indori

धीरे-धीरे से जल रहे हैं हम
मौत की ओर चल रहे हैं हम

दूर रहिए उबल रहे हैं हम
आजकल सच उगल रहे हैं हम

हम मिलेंगे तुम्हें किताबों में
ढेर-अभावों में पल रहे हैं हम

ज़िंदगी अपना लेना अब हमको
तेरे साँचे में ढल रहे हैं हम

भूक इतनी बड़ी कि आलम है
ख़ुद ही ख़ुद को निगल रहे हैं हम

दूर से ही सलाम कर लेना
आइना बन टहल रहे हैं हम

  - Aatish Indori

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