मेरे जज़्बात जाने किधर गए हैं
ऐसा लगता है मानो ये मर गए हैं
तेरी उल्फत का ज़ायका ले चुके जो
अब वो सब लोग जानां सुधर गए हैं
तुम समझती हो तोड़ा है तुमने हमको
जान टूटे नहीं है बिखर गए हैं
ले सके कुछ मिरे इश्क़ से तजुर्बा
ढूंडने मुझको फरहाद घर गए हैं
खैर भी खैरियत मांगती है मेरी
और इधर मुझमें बस सारे शर गए हैं
जोड़ के जो रखे थे तिरे लिए बस
पल वो सारे तिरे बिन गुज़र गए हैं
दावा करते थे जो मरने का बिछड़ कर
वो बिछड़ कर भी हमसे संवर गए हैं
आप अहमद से मिलने को आए हैं क्या?
जी वो तो पिछले हफ्ते गुज़र गए हैं
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