ज़िन्दगी को बड़ा आसान समझते थे हम
यानी ज़िन्दान को गुलदान समझते थे हम
दिल को बहलाने की सब कोशिशें नाकाम रही
दिल समझदार था नादान समझते थे हम
उसके दिल में न मचा पाए ज़रा सी हलचल
वैसे ख़ुद को बड़ा तूफ़ान समझते थे हम
उसने उस को कभी भी पढ़ के न देखा इक बार
उस को जिस नज़्म का उन्वान समझते थे हम
तुम्हें तो हश्र तलक साथ निभाना था मिरा
तुम्हें तो मज़हब-ओ-ईमान समझते थे हम
हम ही से निकला परेशान वो आगे जाकर
अपने दिल का जिसे शायान समझते थे हम
तुम भी कब से भला इन झूठों में शामिल हो गए
तुम्हें तो आयत-ए-क़ुरआन समझते थे हम
आप के आने से खिल पाए यहांँ गु़ल वरना
इस बग़ीचे को तो श्मशान समझते थे हम
उस के मिलने को समझते थे ख़ुदा मिल गया है
उस को अहमद कहांँ इंसान समझते थे हम
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