बरगद को इक दिन उसकी ही परछाई खा जाएगी
सुंदर चेहरों को उनकी ही रानाई खा जाएगी
लोग बहुत हैं उस पगले के घर से लेकर कॉलिज तक
भीड़ हटा दो उसको वरना तन्हाई खा जाएगी
इतनी मुहब्बत वो भी उससे तुम करते हो ठीक नहीं
जानोगे उसका पहलू तो सच्चाई खा जाएगी
ख़ून पसीने से बापू ने तिनका तिनका जोड़ा था
बेटे की दारूबाज़ी पाई पाई खा जाएगी
अंदर की कुछ चोटें फिर से अंदर मेरे उभरी हैं
बरसों की चारासाज़ी ये पुरवाई खा जाएगी
मेरे जगने का कारण गर सुन लोगी तो हँस दोगी
मेरी नींद तुम्हारी आँख की बीनाई खा जायेगी
मोहन की मुँह लगी है मुरली पर सौतन है राधा की
उस पर उसकी धुन बैरन बन हरजाई खा जाएगी
राजा खाए मंत्री खाए नेता खाए संतरी खाए
जनता इनसे बच पाई तो महँगाई खा जाएगी
Read Full