कहीं पे मेले कहीं अकेले कहीं पे हारे नदी किनारे
कहीं पे हँसते नदी में धँसते सदी के मारे नदी किनारे
कहीं जहांँ में न आग फैले इसी वजह से तेरे ख़तों को
समझ के काग़ज़ लगाई माचिस जलाए सारे नदी किनारे
शब ए अमावस को उस नदी में उतर रहे थे फ़लक से तारे
पता चला ये कि चांँद बैठा है छोड़ तारे नदी किनारे
नदी थी इक और दो किनारे रक़ीब बनकर खड़े किनारे
रुख़ ए समंदर किया नदी ने खड़े किनारे नदी किनारे
अगर है सरयू तभी हैं राघव अगर है यमुना तो हैं कन्हैया
अगर है गंगा तभी है काशी बसे ये सारे नदी किनारे
चले थे पत्थर हुए वो मिट्टी सफ़र ने उनको है क्या बनाया
ये ज़िंदगी की यही कहानी चली चला रे नदी किनारे
नदी न होती नगर न होते न होते मिस्र ओ मोहनजोदारो
न होते हम तुम न होती दुनिया न होते प्यारे नदी किनारे
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