अगर हो जीने में मुश्किल ग़ज़ल कही जाए

  - A R Sahil "Aleeg"

अगर हो जीने में मुश्किल ग़ज़ल कही जाए
है दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल ग़ज़ल कही जाए

जमाल-ए-'इश्क़ अगर रू-ब-रू जो आए तो
क़लम उठा के मुमासिल ग़ज़ल कही जाए

फ़क़ीर लोग हैं हम पास कोई काम नहीं
न रहगुज़र है न मंज़िल ग़ज़ल कही जाए

ज़मीं पे चाँद उतरना तो ग़ैर-मुमकिन है
उतर जो आए मुक़ाबिल ग़ज़ल कही जाए

मिले शरफ़ जो ये तो फिर बड़ी तमन्ना है
दर-ए-हुज़ूर हो दाख़िल ग़ज़ल कही जाए

बता भी क़ैस ये सहरा-नवर्दियाँ कब तक
जुनूँ का छोड़ मशाग़िल ग़ज़ल कही जाए

कली कली के बदन पर शबाब है 'साहिल'
चहक रहे हैं अनादिल ग़ज़ल कही जाए

  - A R Sahil "Aleeg"

More by A R Sahil "Aleeg"

As you were reading Shayari by A R Sahil "Aleeg"

Similar Writers

our suggestion based on A R Sahil "Aleeg"

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari