बस इसी बात का रहता है दिन-ओ-रात मलाल - A R Sahil "Aleeg"

बस इसी बात का रहता है दिन-ओ-रात मलाल
इश्क़ ने मुझ को थमाई भी तो सौग़ात मलाल

आज की शाम भी आया न वो कर के वादा
शाम फिर करती रही तर्क-ए-तअल्लुक़ात मलाल

कोई जुगनू न कहीं चाँद सितारे चमके
बैठ के करती रही बाम पे कल रात मलाल

दोस्त तूने भी दिए ज़ख़्म हज़ारों मुझ को
कम थे क्या दिल मे पड़े इश्क़ के छह सात मलाल

अब तअल्लुक़ को निभाने की नहीं गुंजाइश
लाख करने को करे बैठ के बद-ज़ात मलाल

- A R Sahil "Aleeg"
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