गुल ही सीने नहीं लगाने हैं
हाथ काँटों से भी मिलाने हैं
कुछ नहीं है नया कहानी में
जितने किरदार हैं पुराने हैं
वो हरम हो कि बुत-कदा कोई
सब तेरे ही तो आस्ताने हैं
धूम है मयकशों की बस्ती में
अब भी आबाद बादा-ख़ाने हैं
जंग जारी है कुछ पहाड़ों से
मुझको रस्ते नए बनाने हैं
इन अँधेरों को कौन समझाए
हम दियों के भी कारख़ाने हैं
मुंसिफ़-ए-हश्र बख़्श दे 'साहिल'
बख़्श देने के सौ बहाने हैं
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