गुल ही सीने नहीं लगाने हैं

  - A R Sahil "Aleeg"

गुल ही सीने नहीं लगाने हैं
हाथ काँटों से भी मिलाने हैं

कुछ नहीं है नया कहानी में
जितने किरदार हैं पुराने हैं

वो हरम हो कि बुत-कदा कोई
सब तेरे ही तो आस्ताने हैं

धूम है मयकशों की बस्ती में
अब भी आबाद बादा-ख़ाने हैं

जंग जारी है कुछ पहाड़ों से
मुझको रस्ते नए बनाने हैं

इन अँधेरों को कौन समझाए
हम दियों के भी कारख़ाने हैं

मुंसिफ़-ए-हश्र बख़्श दे 'साहिल'
बख़्श देने के सौ बहाने हैं

  - A R Sahil "Aleeg"

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