मेरे ज़ब्त-ए-ग़म से निकल कर दुआ - A R Sahil "Alig"

मेरे ज़ब्त-ए-ग़म से निकल कर दुआ
चली आई लब पर मचल कर दुआ

बिछड़ कर मुझी से मेरे वस्ल को
करेंगे वो करवट बदल कर दुआ

कभी दिल न उनका कोई तोड़ दे
वो माँगे कई दिल कुचल कर दुआ

ये इंसान क्या गर ख़ुदा चाहे तो
यहाँ बुत भी कर दे पिघल कर दुआ

हुआ आज क्या उनको मुल्हिद हैं जो
लगे करने वो दिल मसल कर दुआ

ख़ुदा पहुँचे तुझ तक है ये आरज़ू
मेरी मग़्फ़िरत की उछल कर दुआ

गुनाहों की 'साहिल' सज़ाएँ हैं तय
करें तौबा का'बे में चल कर दुआ

- A R Sahil "Alig"
0 Likes

More by A R Sahil "Alig"

As you were reading Shayari by A R Sahil "Alig"

Similar Writers

our suggestion based on A R Sahil "Alig"

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari