लबों पे मुस्कान दिल में वहशत है ऐब-ख़ल्क़त, मेरी ग़ज़ाला
ख़ता पे अपनी नहीं करे है कभी नदामत,मेरी ग़ज़ाला
सो जैसे चाहा बुना है रब ने बदन का ख़ाका, ये उसकी मर्ज़ी
हर एक ढब के हैं अपने-अपने कसाव-कसरत, मेरी ग़ज़ाला
क़रार दे-दे मुझे तू काफ़िर, न छूट पाएगी ये इबादत
रहेगी क़दमों में सिर्फ़ तेरे ये मेरी जन्नत, मेरी ग़ज़ाला
नहीं है मुमकिन कि कट सके ये ख़ुदा का लिक्खा प सोचता हूँ
वो मिल के मुझसे कभी तो मेरी बदल दे क़िस्मत, मेरी ग़ज़ाला
अना से माँगू, जहाँ से माँगू, तुझे मैं किस-किस ख़ुदा से माँगू
बनी है मेरे ही जान-ओ-जी की तू सख़्त आफ़त, मेरी ग़ज़ाला
मैं चाहता हूँ बना ले साहिल मुझे तू अपनी ही ज़िंदगी का
नहीं है मुझको ज़माने भर से कोई भी हाजत, मेरी ग़ज़ाला
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