हम-सफ़र लाखों थे लेकिन रहनुमा कोई न था - Dharmesh bashar

हम-सफ़र लाखों थे लेकिन रहनुमा कोई न था
मंज़िलें चारों तरफ़ थीं रास्ता कोई न था

बहर-ए-ग़म का हाल हम किस से कहें कैसे कहें
कश्तियाँ ही कश्तियाँ थीं ना-ख़ुदा कोई न था

मंदिरों में जितने बुत थे सब के सब बे-जान थे
मस्जिदों में भी मगर यारो ख़ुदा कोई न था

मोमिनों की बात छोड़ो मुनकिरों को भूल जाओ
मैं जहाँ पर था वहाँ मेरे सिवा कोई न था

वो कहाँ का आसमाँ था वो कहाँ की ख़ुल्द थी
हूर-ओ-ग़िल्माँ थे बहुत पर आप सा कोई न था

मुझको कल बैठे-बिठाए ले गया कोई कहाँ
जानने वाले बहुत थे आश्ना कोई न था

हम-निवाला हम-पियाला हम-तरीक़त हम-लिबास
ये तो सब मौजूद थे पर हम-नवा कोई न था

उस हुजूम-ए-नाज़ में यूँ तो कई बहनाज़ थे
जिस पे दिल आ जाए ऐसा दिल-रुबा कोई न था

कल तिरी महफ़िल में रौनक़ भी थी वीरानी भी थी
वाँ 'बशर' तो था मगर ग़म-आश्ना कोई न था

- Dharmesh bashar
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