सहन-ए-गुलशन में जो ख़ुश थे आशियानों में रहे - Dharmesh bashar

सहन-ए-गुलशन में जो ख़ुश थे आशियानों में रहे
तालिब-ए-वुसअ'त थे हम सो आसमानों में रहे

अपनी बद-हाली के बाइस थे सभी के दिल में हम
ला-मकानी में भी अक्सर यूँ मकानों में रहे

लोग बहरे थे जिन्हें चाहा सुनाया हाल-ए-दिल
यूँ ज़बाँ होते हुए भी बे-ज़बानों में रहे

हम वो ख़ुशबू हैं जिन्हें वुसअ'त हवाओं ने न दी
ज़िन्दगी भर क़ैद हो कर इत्रदानों में रहे

उनकी उल्फ़त उनकी यादों का सहारा ले लिया
धूप से बचने के ख़ातिर शामियानों में रहे

बंदिश-ए-रस्म-ओ-रवायत क़ैद-ए-उल्फ़त उम्र-भर
ज़िन्दगी यूँ जी है गोया क़ैदख़ानों में रहे

मस्लहत अपनी थी जो ज़ालिम को शय मिलती रही
वर्ना हम भी तेग़ थे लेकिन मयानों में रहे

था उन्हें ही ख़ौफ़ अब के बर्क़ और सय्याद का
ख़्वाहिश-ए-इशरत लिए जो आशियानों में रहे

फूल में ख़ुशबू हो जैसे या हो नग़्मा साज़ में
यूँ 'बशर' अब ज़िक्र उसका दास्तानों में रहे

- Dharmesh bashar
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