आ जा कि इज़्तिराब में है जाँ तिरे बग़ैर
होता नहीं सुकून का सामाँ तिरे बग़ैर
कहने को बे-शुमार नज़ारे हैं याँ मगर
दुनिया दिखाई देती है वीराँ तिरे बग़ैर
दिल-कश न रंग-ए-ग़ुंचा न पुर-कैफ़ बू-ए-गुल
किस काम की है फ़स्ल-ए-बहाराँ तिरे बग़ैर
जैसे किताब-ए-दहर पे इक हर्फ़-ए-ना-तमाम
क्या है मिरा वजूद मिरी जाँ तिरे बग़ैर
सब कुछ हो पास तू जो नहीं है तो कुछ नहीं
ख़ाली है मेरे शौक़ का दामाँ तिरे बग़ैर
जब तू मिला तो जैसे किनारा मिला मुझे
थी ज़ीस्त एक मौज-ए-परेशाँ तिरे बग़ैर
मंज़र तिरी जुदाई का अब भी है सामने
थम सी गई है गर्दिश-ए-दौराँ तिरे बग़ैर
ये मोजिज़ा नहीं तो भला और क्या है फिर
ज़िंदा हूँ आज भी मैं सनम हाँ तिरे बग़ैर
ऐ जान-ए-शादमानी-ओ-इशरत चला भी आ
हैं रंज-ओ-ग़म 'बशर' पे नुमायाँ तिरे बग़ैर
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