सब लोग पूछते हैं मुहब्बत में क्या मिला
मैं क्या कहूँ कि यार मिला या ख़ुदा मिला
रातों की नींद उड़ गई दिन का गया सुकूँ
कुछ ऐसे बाँकपन से वो काफ़िर-अदा मिला
कल तक सजी हुई थी जहाँ दिल की काइनात
वाँ आज एक टूटा हुआ आइना मिला
इक शौक़-ए-वस्ल था कि रहा महव-ए-जुस्तजू
इक दर्द-ए-हिज्र था कि मुझे बारहा मिला
फूलों की अंजुमन से कि तारों की बज़्म से
क्या जाने किस मक़ाम से उसका पता मिला
देखा उसे तो रूह पे मस्ती सी छा गई
महसूस यूँ हुआ कि कोई मय-कदा मिला
मेरी दु'आ यही है कि उस बुत की ख़ैर हो
जिसके तुफ़ैल से मुझे मेरा ख़ुदा मिला
वो देख कर 'बशर' की ये रीश-ए-दराज़ को
बोला ख़ुदा का शुक्र है इक पारसा मिला
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