फिर इसी बज़्म में ले आए हैं देखे कोई
बात मेरी न सुने कोई न समझे कोई
सुब्ह हो ज़ुहर हो या शाम कि हो नीम शबी
घर का दरवाज़ा खुला रक्खो कि आए कोई
बे-यक़ीनी से कोई मेरा सरापा देखे
हो के हैरान मिरी आँख में झाँके कोई
मेरी नज़रों से मिरे दिल का धड़कना जाँचे
अपनी नज़रों से मिरी नब्ज़ टटोले कोई
बन के तस्वीर मेरे सामने कुछ यूँ बैठे
मेरे काबे को सनम-ख़ाना बना दे कोई
रौशनी बन के मिरे दिल को मुनव्वर कर दे
बन के ख़ुशबू मिरे अन्फ़ास में महके कोई
बन के शो'ला मिरे एहसास को बे-दार करे
बन के नग़मा मिरे अफ़कार में गूँजे कोई
हाथ पर दिल न रखा और न गिरा फिर भी 'बशर'
सीने को तोड़ के दिल 'कैफ़' का तोड़े कोई
फ़लसफ़ी था वो कभी अब तो 'बशर' शाइर है
इसके अश'आर में वो बात न ढूँढे कोई
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