ज़माने की नज़र में इक अदा है तेरी ख़ामोशी
मगर मेरे लिए तो बस क़ज़ा है तेरी ख़ामोशी
यही क्या कम था मेरी बज़्म में आमद नहीं होती
जफ़ाओं से जुड़ा इक सिलसिला है तेरी ख़ामोशी
कभी शादाब था जो दिल वही बेताब रहता है
सबब बेताबियों का पुर-जफ़ा है तेरी ख़ामोशी
बहुत चाहा कि मैं नज़दीक आ जाऊँ तिरे लेकिन
दिलों के दरमियाँ का फ़ासला है तेरी ख़ामोशी
मुझे डर है कहीं पैदा न कर दे यह ग़लत-फ़हमी
गुमाँ को साज़िशों में मुब्तला है तेरी ख़ामोशी
तरस जाता हूँ तुझसे गुफ़्तगू को ऐ मिरे हम-दम
सज़ा-ए-मौत से बढ़ कर सज़ा है तेरी ख़ामोशी
किसी को हो न हो मुझको ख़बर है सब तिरे दिल की
मिरा ही दिल है जो सुनता रहा है तेरी ख़ामोशी
हया कैसी ये पर्दा-दारी कैसी आ गले लग जा
मुहब्बत की फ़ज़ा में बद-मज़ा है तेरी ख़ामोशी
सुकून-ए-दिल की ख़ातिर बख़्श दे इतना यक़ीं मुझको
फ़क़त इक दिल्लगी की ही अदा है तेरी ख़ामोशी
'बशर' ये ख़ाकसारी तोड़ डालेगी इसे इक दिन
बहुत नाज़ुक सा ये इक आइना है तेरी ख़ामोशी
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