हिज्र में भी इश्क़ तुम से ही करना है
पास मेरे अपनी यादों का गहना है
आशिक़ों का मुख़्तलिफ़ होना पुर-ज़रूर
हम तिरे दिल में नही तो क्यूँ रहना है
ज़िंदगी में ज़ख़्म मैंने बिस्यार पाए
अब मिरे हर ज़ख़्म को तुम को सहना है
यह मिरे ज़ख़्म-ए-ज़माना उम्र-ए-अबद
तेरे ही यादों में मुझ को ही डहना है
इस जहाँ को अपना माना ग़लती तिरी
ख़ुद बचा ले जाँ भँवर अब तो मरना है
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