दवा को ज़हर समझे हर दुआ को बद-दुआ समझे
रखें क्या हौसला वो ख़ुद को जो बे-दस्त-ओ-पा समझे
अमल अपने न देखे मुझ को बर्बाद-ए-अना समझे
तजाहुल है तग़ाफ़ुल है सबा समझे तो क्या समझे
बहुत आसान है महफ़िल में हर मिसरे को दोहराना
तह-ए-मफ़हूम पहुँचे जो फ़न-ए-हर्फ़-ओ-सदा समझे
वो बरसों में वतन लौटा तो हर चेहरा था पत्थर का
है मुश्किल में किसे वो आश्ना ना-आश्ना समझे
न रौशन आँख की तोहमत लगा वीराँ दरीचे पर
न ये हुस्न-ए-शफ़क़ देखे न ये रंग-ए-हिना समझे
कभी है बर्क़-ओ-बाराँ और कभी चहकी हुई ख़ुश्बू
तिरे कूचे की फिर कैसे कोई आब-ओ-हवा समझे
नई तहज़ीब लाई है बनाम-ए-इश्क़ उर्यानी
न ये हुरमत मुहब्बत की न नामूस-ए-वफ़ा समझे
बसारत और समाअत में अजब तफ़रीक़ है यारो
कहे शोला सबा और कोई क़िन्दील-ए-नवा समझे
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