क्या करें ख़्वाब की तितलियाँ उड़ गईं
आँखों से मेरी सब झलकियाँ उड़ गईं
यूँ चलाई हवा वक़्त ने तेज़तर
दामन-ए-सब्र की धज्जियाँ उड़ गईं
बदनसीबी की जब मार उस पर पड़ी
उसके चेहरे से सब शोख़ियाँ उड़ गईं
उसके काँधों पे जब घर का बोझ आ गया
नौजवानी की सब मस्तियाँ उड़ गईं
उससे पूछें तो पूछें भी हम किस तरह
उसके लहजे से क्यों तल्ख़ियाँ उड़ गईं
उसकी गुफ़्तार का रुख़ था तूफ़ान सा
ज़ावियों की सभी पत्तियाँ उड़ गईं
दिल ये प्यासा 'सबा' का तो प्यासा रहा
तेज़ आई हवा बदलियाँ उड़ गईं
As you were reading Shayari by divya 'sabaa'
our suggestion based on divya 'sabaa'
As you were reading undefined Shayari