घर लौट के जाने के ख़यालात लिए वो
ख़्वाबों में भी मिलते हैं शिकायात लिए वो
ज़ख़्मों की हर इक टीस पे रुक जाते हुए हम
तारों की गुज़रती हुई बारात लिए वो
इस शोर-शराबे में चले आएँ कभी तो
परियों की तरह नींद के नग़्मात लिए वो
किस सोच में उलझन में खड़े हैं मेरे नज़दीक
होंठों पे मुहब्बत की दबी बात लिए वो
इनकार की आँखों से झलकता हुआ इक़रार
इक लुत्फ़ में सौ लुत्फ़-ए-इनायात लिए वो
माथे पे जलाए हुए इक सुब्ह की क़िंदील
घनघोर खुली ज़ुल्फ़ों में इक रात लिए वो
सुध भूले कँवल नैनों में वो नींद के झोंके
सो जाते सबा हाथों में यूँ हाथ लिए वो
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