कैसे बताएँ ये कि ख़फ़ा हैं किसी से हम
बिखरे हैं ज़र्रा-ज़र्रा तिरी बे-रुख़ी से हम
मंज़िल पे क्यों पहुँचने की हिम्मत नहीं रही
मंज़िल को देखते हैं बड़ी बे-बसी से हम
दुश्वारियों का दौर था सारे जहान में
मिलता ही क्या जो माँगते जा कर किसी से हम
फिर है जुनून-ए-शौक़ को जीने की आरज़ू
मायूस भी नहीं हैं अभी ज़िन्दगी से हम
तुम ही मुझे बताओ कि मैं क्या बताऊँ अब
मिलते रहे हमेशा जो इक अजनबी से हम
किसको 'सबा' सुनाएँ हम अपनी ये दास्ताँ
जीने को जी रहे हैं मगर बे-दिली से हम
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