ये जो बाहर ख़ुदा से डर रहे हैं
बहुत कुछ दिल के अन्दर कर रहे हैं
अभी देखा है कुछ टीवी में शायद
मिरे बच्चे मुझी से डर रहे हैं
इरादा है मिरा घर बेचने का
पड़ोसी ख़ूब ख़ातिर कर रहे हैं
यहाँ पर कोई दरिया-दिल नहीं है
सब अपने घर का पानी भर रहे हैं
तिरी ख़ुश्बू से जो वाक़िफ़ नहीं हैं
वो फूलों से गुज़ारा कर रहे हैं
निकल आए तो फिर रोने न देंगे
हम अपने आँसुओं से डर रहे हैं
टहलते फिर रहे हैं सारे घर में
तिरी ख़ाली जगह को भर रहे हैं
As you were reading Shayari by Fahmi Badayuni
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