अगर ग़ज़ल ने मिरे ग़म न ये चुने होते - SAFEER RAY

अगर ग़ज़ल ने मिरे ग़म न ये चुने होते
तो मरते डूब के कब ये दहन सुने होते

जो एक ज़ुल्फ़ पसीने से झूलती उन पर
उलझ गए अगर उनमें तो हम धुने होते

ज़माने भर की सदाओं को है ये डर मुझसे
गुज़रती मुझसे तो ये ग़म कई गुने होते

जो अपनी प्यास को मैं दस्तियाब कर लेता
ख़ुदा क़सम तिरे सपने न फिर बुने होते

नहीं पता है वो तिश्ना-लबी जो यारों की
अगर पता जो चले सच तो ये सुने होते

- SAFEER RAY
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