हाथों में जो थामा लम्हा खोने का डर फिर से है
आँखों ने है ख़्वाब जो देखा रोने का डर फिर से है
सालों पहले हमने लगाए पौधे उनकी चाहत के
आँखों की बारिश में उनके खोने का डर फिर से है
एक नशेमन कागा है और इक आवारा बुलबुल है
पर दोनों को इक दूजे से होने का डर फिर से है
जैसे तैसे घर तो बना है पर दीवारें कच्ची हैं
मेरे दिल को शहर में बारिश होने का डर फिर से है
फिर से किसी ने दिल में उसके दस्तक आख़िर क्यों दी है
कुछ फूलों को ख़ाक-ए-बदन में बोने का डर फिर से है
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