कितने चेहरे उदास रहते हैं

  - Dhirendra Pratap Singh

कितने चेहरे उदास रहते हैं
जब भी हम तेरे पास रहते हैं

मुझमें दो चार ऐब लाज़िम है
काँटें फूलों के पास रहते हैं

ब्याह दी जाती हैं सभी पारो
लड़के ही देवदास रहते हैं

इसलिए गमले में खिले हैं फूल
धूप के आसपास रहते हैं

वही पीते हैं चाय साथ मेरे
लोग जो थोड़े ख़ास रहते हैं

जब से रुख़्सत हुआ है ख़्वाब से वो
ये नयन बद-हवास रहते हैं

तेरी तस्वीर जब नहीं होती
कमरे वमरे उदास रहते हैं

  - Dhirendra Pratap Singh

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