सोचा कैसे जाए कुछ फ़िलहाल के आगे भी - kirti

सोचा कैसे जाए कुछ फ़िलहाल के आगे भी
साल ही बढ़ने है आख़िर इस साल के आगे भी

पैर जमाने भी क्यूँ इस मायावी दुनिया में
लामहदूद जहाँ है इस ख़द-खाल के आगे भी

आप गिरा सकते हैं मुझको मिटा नहीं सकते
मेरे पीछे वो है जो है उस काल के आगे भी

आज के यो यो क्या समझे नुसरत के तरानों को
औरत की कोई ज़ात है चीज़ और माल के आगे भी

फ़ोन तो इक कर के देखूँ पूछूँ कैसा है वो
पर फिर बात बढ़ेगी हाल ओ काल के आगे भी

लड़की को ब्याह लाते हैं फिर भूल ही जाते हैं
उसकी कोई दुनिया है ससुराल के आगे भी

- kirti
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