सुनकर कितना दिल छोटा हो जाता है
उस पर कोई अपना हुक्म चलाता है
मैंने पलकों पर जिसका हर नाज़ रखा
कोई उसको पैरों पर ले आता है
ये ही अच्छा होगा कहकर छोड़ दिया
अच्छा करने वालों का क्या जाता है
जिसको कल ज़हमत थी फ़ोन उठाने में
रात बिरात अब ख़ुद से फ़ोन मिलाता है
आख़िर वक़्त तुम्हें ले आया मेरी जगह
मैं ना कहती थी ऐसा हो जाता है
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