बराबर जी लगाती है भले ही जान लेती है
असल जीना सिखा करके उदासी जान लेती है
वो लड़की इश्क़ है वो रंज है शाफ़ी है क़ातिल है
वो लड़की जान है मेरी वो लड़की जान लेती है
क़ुबूली है जिन्होंने ख़ुद ख़ुशी से अपनी बीमारी
हक़ीम ऐसे मरीज़ों की दवा ही जान लेती है
नम आँखे भी नहीं होती के फ़ौरन फ़ोन बजता है
मुझे उसकी ज़रूरत है ये दीदी जान लेती है
किसे जलना है सारी रात किसको गीत लिखने हैं
बुझाना भी किसे कब है उदासी जान लेती है
समझते थे वो दे दे ज़ख़्म 'कीर्ति' को मिटा देंगे
अब अपने घाव लिख लिख कर वो उनकी जान लेती है
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