ये काँधे झुक चुके हैं अब तिरे इल्ज़ाम ले ले कर
मुहब्बत संग नफ़रत ज़ख़्म महँगे दाम ले ले कर
कभी गर भूल से भी हम ज़रा सा हँस जो लेते हैं
दरारें चीख़ पड़ती हैं तुम्हारा नाम ले ले कर
तुम्हें तो नाज़ था लड़के कि वो दिलबर अनोखा है
तो फिर क्यों रो रहे बर्बादियों का जाम ले ले कर
कोई तो हो हमीं से जो हमारा हाल पूछेगा
यहाँ सब भूल जाते हैं हमीं को काम ले ले कर
ये ठोकर ही तुम्हारे नाम को आगे बढ़ाएगी
कि अक़्लें आ नहीं सकतीं फ़क़त बादाम ले ले कर
बुझा सकते हो बेशक जिस्म में जलती मशालों को
ये दिल फिर चल पड़ेगा कृष्ण का पैग़ाम ले ले कर
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