अकेले जिंदगी का ये सफ़र क्या ही अभी करते
जुदाई इश्क़ की कोई ख़बर क्या ही अभी करते
नदारद ही हुआ है जब लगे अक्सर दिलों दिल से
बसा के उस गली में घर उधर क्या ही अभी करते
ज़मीं से जायदादों का बड़ा हैं वास्ता लेकिन
उसी से फ़ायदा सबका न कर क्या ही अभी करते
ख़यालों ही ख़यालों में तफ़क्कुर जब कभी मिलते
बताओ ऐसे रिश्ते को नज़र क्या ही अभी करते
बिना उसके अगर सीखा जिए ये ज़िंदगी कैसे
बना के घर दिल-ओ-दिल में सफ़र क्या ही अभी करते
लुटाया पास का सब कुछ क़रीबी के लिए तो फिर
बताओं चंद पैसों में गुज़र क्या ही अभी करते
'मनोहर' इल्म जब भी हो सितारों सा बताओ फिर
ज़मीं से आसमाँ तक का सफ़र क्या ही अभी करते
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