अंजुमन में रंग भी छाया न होगा - Manohar Shimpi

अंजुमन में रंग भी छाया न होगा
रौब-रुतबे से मज़ा आया न होगा

अब लकड़हारा नज़र आता कहाँ है
पेड़ कटने से घना साया न होगा

हक़ मिला है तो सियासत उस पे होगी
वोट भी हर नफ़्स का ज़ाया न होगा

लौट के पंछी कहाँ आते मेरे यार
जब शजर का सर कोई साया न होगा

मुफ़लिसों के ही लिए हैं मुश्किलें क्यूँ
फिर सभी ने आज कुछ खाया न होगा

ज़िंदगी में गुम-शुदा होते कई दोस्त
यार वो गुमराह है आया न होगा

जीत गुलदस्ता बताता है 'मनोहर'
जीत का ये जश्न भी ज़ाया न होगा

- Manohar Shimpi
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