उम्र भर धूप से नहाए हैं
मुश्किलों में भी मुस्कुराए हैं
हासिल-ए-जी़स्त भी गिना देंगे
पूछ लो क्या गँवा के आए हैं
आख़िरी बार जानते हो ना ?
आख़िरी बार मिलने आए हैं
ख़ुद को पूरी तरह मिटाना पड़ा
तब कहीं तुमको भूल पाए हैं
कुछ नए ज़ाविए लगा ‘मौजी’
शे’र सारे सुने सुनाए हैं
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