बच के अब कोई यहाँ से न बवाली जाए
कोई तरक़ीब चलो मिल के बनाई जाए
कुछ भी मुमकिन है अगर मन में रहे मज़बूती
फ़स्ल सीने में सदाक़त की उगा ली जाए
आसमाँ चीर सितारों को भी छू सकती है
एक गोटी जो कि शिद्दत से उछाली जाए
अब तो ख़ामोश मुझे कौन भला कर सकता
मैं क़लम हूँ न ज़बाँ जो के सिला दी जाए
वो जो दहशत के दरिंदे हैं भरी दुनिया में
उनकी शमसीर से शमसीर लड़ाई जाए
दुनिया पुर-अम्न हो दहशत के लिए ठौर न हो
थोड़ी तरजीह मसाइल को दिला दी जाए
बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी
मुत्मइन हूँ मैं भले क़ैद करा ली जाए
नित्य इंसान हूँ इंसान ही रहने दो मुझे
दीन और ज़ात मेरी हद से हटा ली जाए
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