क़िस्मत किसी के बाप की जागीर न होगी
मेहनत वगैरह नस्र यूँ तक़दीर न होगी
शमशीरें लाख देखीं ज़माने में मगर हाँ
ईमाँ से पैनी कोई भी शमशीर न होगी
मैंने सफ़र किए हैं दयारों में दिलों के
ख़ुशियों भरी तो इश्क़ की तक़दीर न होगी
हमने तो जंगलों में गुज़ारी है शब-ए-ग़म
महलों में मेरे काम की तक़रीर न होगी
जीती थी दुनिया सारी सिकंदर ने भले ही
पौरुष की वीरता भी तो ख़मगीर न होगी
उपमन्यु एहतिमाल जहाँ में है बड़ा रोग
पर दुनिया मेरी बात पे गम्भीर न होगी
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