तू गर मुफ़लिसों के सहारों में होता
तेरा नाम भी रहनुमाओं में होता
फ़क़ीरी अगर आ गई होती तुझको
तो लहरों से बचकर किनारों में होता
मैं बीमार-ए-ग़म हूँ मुहब्बत में तेरी
न रोता अगर तू निगाहों में होता
नहीं फाँसियाँ ले रहा होता बिल्कुल
जो ख़ुद्दार कोई किसानों में होता
तेरे चर्चे हर-सू ज़माने में होते
जो तू सच्चे ईमानदारों में होता
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