तुम्हारे हुस्न का जादू अगर जो आम हो जाए - Nityanand Vajpayee

तुम्हारे हुस्न का जादू अगर जो आम हो जाए
तो रंग-ए-हुस्न से भीगी मुकम्मल शाम हो जाए

तुम्हें पाने की जद्द-ओ-जहद में हैं सारे दुनियावी
अदद भर दिल-फ़िगारों में तो क़त्ल-ए-आम हो जाए

लबों का सुर्ख़-पन देखें तो पी लें आग का दरिया
अगर आँखों में उतरें तो समंदर जाम हो जाए

तुम्हारी माहताबी से उजाले हैं जहाँ भर में
बदन की रौशनी से चाँद का औहाम हो जाए

सिपहसालार तेरे गर हमारी जान ले लें तो
मुक़द्दस आशिक़ों में फिर हमारा नाम हो जाए

ख़ुदा बख़्शिश में तुम जैसी हमें दे दे जो 'नित्यानन्द'
हमारी दिल-ब-दोशी को ज़रा आराम हो जाए

- Nityanand Vajpayee
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